क्षणिकाएं (उछल छन्द)

सूरज हो
चाहे हवा भरी गेंद
दबाऊं कितना
उपर तो आ ही जाओगे
उछल कर

गढे कुम्हार
माटी
बरतन खुरदरे
हाथ टेढे सांई के

मन ही तो हो
मन भर तो नहीं
बांहे
विशाल समेट लेंगे मन में।

जरूरी है हवा
पर
बचना भी जरूरी
हवा हो जाने से

पहुंच पावों
की
समझे आंख
रास्ता गर्वीजे
उसी जगह पड़ा

थी ,मधुर
होना था राग
कोमल
दांतो ने जो कुचला
छिल कर हुई
भोथरी
कर्कश राग।।

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