ग़ज़ल
——–
फिर तुमसे मिलने की दिल में आस रहे
ये दौर भी गुजर जायेगा होती आभास रहे
जालिम है ये कोरोना अभी मिलने नही देगा
मैं तेरे दिल में बसा हूँ तू मेरे दिल के पास रहे
फासले भी यूँ नजदीकियाँ में बदल जायेगी
दिल में बस मोहब्बत की ज़रा अहसास रहे
लॉकडाउन में अब यादों की ही सहारा है
तुम्हारे साथ गुजारे हुये लम्हे जो खास रहे
बुझे न विरह में तड़पते दिल की ये आग
चाहत की तुम्हारी, हरदम मुझे प्यास रहे
ज़हर घोलते है यहाँ की फ़िजा रिश्तों में
मैं तेरा हूँ तू मेरी है बनी ये विशवास रहे
मिट जाए दिल की कड़वाहट सभी अब
रिश्ते में हमारी अब बनी यूँ ही मिठास रहे..।।
