दीप जले अंधकार चीरकर मन की पीड़ा दूरकर उल्लसित मन सुमन तरंग ज्योतिर्मय जग में भीनी सुगन्ध दीप जले ,दीप जले!
अलसाई खेतों में मेहनत का प्रतिफल हो बंगले की आभा से झोपड़िया रोशन हो मानवता सजोर रहे हिन्दू न मुस्लिम हो माटी का नन्हा लोंदा हाथों में साथ बढे दीप जले, दीप जले!
घर की खिचडिया सही भले न पकवान बने तरसे न बचपन फिर भूख न शैतान बने नन्ही सी बिटिया की आभा न आंच आये खुशीयो को अपनी दूजा न रो पाए दीप जले,दीप जले!
बम और लरियो की इतनी न धमाके हो उजड़े न घर बार कोई अपनो की यादें हो सरहद सुकून मिले अमन का बिसाते हो हाथ बढ़े, गले मिले दीप जले, दीप जले!
सहमी सी धरती में अपनों का क्यो रोना जीत जाए मानवता हारे अब कोरोना चिंतन मन सद्प्रयास जन मन का साथ मिले दीप जले-दीप जले…