रेशम की धागों की डोरी
राखी बनकर सजी कलाई
बहना भी इतराकर कैसे
भैया पर अधिकार जताई
रोली कुमकुम तिलक माथ
पकवानों के साथ मिठाई
भारी मन भी आज प्रफुल्लित
पाकर साथ बहन का भाई…

मांगे क्या उपहार बहन भी
भाई की खुशियां ही काफी
जीते जी मैं सदा बांध लू
तेरे इन हाथों में राखी
और भला वर रक्षा का दे
उमर रह गया अब जो बाकी
रुपये पैसे सोने चांदी से
किसने प्रेम की बोली लगाई
भारी मन ….
राखी की कीमत कितनी है
पूछो जिनकी सूनी कहानी
नन्ही गुड़िया मां से बोली
दिलवा दो मां मुझे भी भाई
तुतलाते नन्हे स्वर में
राखी की रट मुन्ने ने लगाई
सच कहते है दुनिया वाले
बहन भाई की है परछाई
भारी मन…….
