## वृद्धावस्था में ##
अच्छे दिन की आस में,
बीत गए वो अच्छे दिन,
हंसी के दिन खुशी के दिन,
मित्रों की टोली के संग।
टोली हमारी बहुत खुशहाल,
सुनना और सुनाना होता,
गाना और बजाना होता,
वर्षों से थी चली आ रही।
पड़ी समय की मार भयंकर,
घर में रह गए बन के बंदर,
उछल कूद कर समय बिताना,
जवां चलता चला वृद्ध घर में रुका।
मिलकर देख रामायण दूरदर्शन पर,
सुत का पाया प्यार अपार,
नई-नई नित तरकीब लगाकर,
मोबाइल दिया मुझको उपहार।
नाती – नातिन ने भी,
अपना कर्तव्य निभाया,
सिखाकर मोबाइल मुझको,
आनंद उन्हें बहुत आया।
उंगली घुमा- घुमा कर,
मित्र बनाएं अनेक,
मिलती खुशियां अधिक,
प्राप्त जो होते संदेश।
मोबाइल की लत बड़ी खराब,
आंखें खेलती आंख मिचोली,
चिड़चिड़ा मेरा व्यवहार,
संग में भूल रहा परिवार।
समय बदलाव का,
परिवार के साथ का,
सच्ची खुशियां यही मिलेगी,
अपने परिवार में संसार में।
