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सुरभित मुखरित पर्यावरण
सुन्दर सुसज्जित आवरण
मानव ने किया इनका हरण
निजी स्वार्थ वश मानव ने
किया भौतिकता का वरण
सुरभित मुखरित था पर्यावरण
उजड़ सा गया अब इनके चमन
कभी विकास की कारखाने लगाते
कितने वृक्षो को है निर्मम काटते
निरीह प्राणियो के घर उजाड़ते
कितने तुमने मानुषी कष्ट सहे
स्वार्थ में कितना अँधा हुए मानव
मानवता को छोड़ बन गये दानव
सुरभित मुखरित था पर्यावरण
चढ़ गया धूल कूड़ा का आवरण
कभी भूकम्प,कभी सुनामी आती
कभी वायरस है महामारी लाती
देती प्रकृति बार बार यही सन्देश
स्वच्छ सुन्दर सन्तुलित हो परिवेश
हरा भरा हो चहुँ ओर वन उपवन
पुष्पित पल्लवित हो हर चमन
अब और न हो प्रकृति का दमन
आओ करें सब प्रकृति को नमन
सन्तुलित उपभोग की हो आचरण
सुरभित मुखरित रहे ये पर्यावरण
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