सुरभित मुखरित पर्यावरण


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सुरभित मुखरित पर्यावरण
सुन्दर सुसज्जित आवरण
मानव ने किया इनका हरण
निजी स्वार्थ वश मानव ने
किया भौतिकता का वरण
सुरभित मुखरित था पर्यावरण
उजड़ सा गया अब इनके चमन

कभी विकास की कारखाने लगाते
कितने वृक्षो को है निर्मम काटते
निरीह प्राणियो के घर उजाड़ते
कितने तुमने मानुषी कष्ट सहे
स्वार्थ में कितना अँधा हुए मानव
मानवता को छोड़ बन गये दानव
सुरभित मुखरित था पर्यावरण
चढ़ गया धूल कूड़ा का आवरण

कभी भूकम्प,कभी सुनामी आती
कभी वायरस है महामारी लाती
देती प्रकृति बार बार यही सन्देश
स्वच्छ सुन्दर सन्तुलित हो परिवेश
हरा भरा हो चहुँ ओर वन उपवन
पुष्पित पल्लवित हो हर चमन
अब और न हो प्रकृति का दमन
आओ करें सब प्रकृति को नमन
सन्तुलित उपभोग की हो आचरण
सुरभित मुखरित रहे ये पर्यावरण
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गजल फिर तुमसे मिलने की

ग़ज़ल
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फिर तुमसे मिलने की दिल में आस रहे
ये दौर भी गुजर जायेगा होती आभास रहे

जालिम है ये कोरोना अभी मिलने नही देगा
मैं तेरे दिल में बसा हूँ तू मेरे दिल के पास रहे

फासले भी यूँ नजदीकियाँ में बदल जायेगी
दिल में बस मोहब्बत की ज़रा अहसास रहे

लॉकडाउन में अब यादों की ही सहारा है
तुम्हारे साथ गुजारे हुये लम्हे जो खास रहे

बुझे न विरह में तड़पते दिल की ये आग
चाहत की तुम्हारी, हरदम मुझे प्यास रहे

ज़हर घोलते है यहाँ की फ़िजा रिश्तों में
मैं तेरा हूँ तू मेरी है बनी ये विशवास रहे

मिट जाए दिल की कड़वाहट सभी अब
रिश्ते में हमारी अब बनी यूँ ही मिठास रहे..।।

शब्द ही सुर शुलभ मेरा

शब्द ही सुर सुलभ मेरा
शब्द ही साज है मेरा।
अर्चना शब्द की करता
यही अंदाज है मेरा।।
शब्द आधार है मेरा
शब्द ही प्यार है मेरा।
अर्चना शब्द की करता
शब्द ही संसार है मेरा।।
शब्द को साधना दुष्कर
शब्द की साधना दुष्कर
शब्द स्वरूप केहरी का
शब्द को बांधना दुष्कर
कठिन है शब्द में रमना
कठिन ले शब्द को थमना
शब्द संसार में कितना
दुष्कर शब्द ले चलना

रंगीली होली


होली लाये प्रेम का,सन्देशा जन मन भरे
हर्षित मन झूमें, लगे मधुमास हो
धरती के सारे रंग,भाव बन सजे ऐसे
जैसे इस बार होली,अपनी ही खास हो..

लाल लगे माथे,शौर्य का प्रतीक बन
पौरुष पराक्रम ,विजय श्री भाल हो
केसरिया त्याग का सन्देशा,जग जन को दे
संयम वैराग्य तप,अपने ये ढाल हो
धरती की अंगड़ाई,हरे की हरियाली फैले
लहराये तृण-तृण,वसुधा का साज हो…

विद्या का प्रकाश फैल,तिमिर अशिक्षा का हरे
चहुँओर ज्ञान पीले, रंग का पैगाम हो
नीले सज पुरुषार्थ,मान बढ़ जाये
विश्व गुरु फिर अपना, हिंदुस्तान हो…..

श्वेत सजे मन की ,पवित्रता का भाव लेके
चहुँओर शांति,स्वच्छता सद्भाव हो
रंग सारे मिल जाये,दूर हो विषमताएं
विश्वशांति,सद्भाव का,पूरा अब अरमान हो…..

हार कहाँ हमने मानी है


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हार कहाँ हमने मानी है
राष्ट्र के संघर्ष पर निरन्तर पथगामी है
हर मुश्किल से लड़कर लिखते नई कहानी है
संघर्ष रत है हम, हार कहाँ हमने मानी है

चली ये कैसी झकझोर हवा तूफानी है
जन्म लिया जहाँ कोरोना, की उसने मनमानी है
कोरोना अभिशाप बना हमारे लिए, हुई हैवानी है
समय रहते स्थिति भांपा, भारत की बुद्धिमानी है
भारत की सूझबूझ देख , हुई जग को हैरानी है
मिट जाएगा नामोनिशान रार उनसे अब ठानी है
है जोर कितना हममें, ये दुनिया को दिखलानी है
हार कहाँ हमने मानी है

कोरोना ने कैसा तांडव नाच नचाया
सारा संसार अब इनसे है घबराया
बला क्या है ये कोई समझ न पाया
कारखाना मीलो में भी, ताला जड़ा
लॉक डाउन कर घर में रहना पड़ा
पर कोरोना से लड़ने की,हमने ठानी है
सम्पन देश भी जहाँ, मांग रहा पानी है
हार कहाँ हमने मानी है

जब-जब देश में संकट का बादल छाया
मिलकर हमने है उसे हराया
वर्षो से बंधी गुलामी की जंजीरे तोड़े
आँख दिखाये दुश्मनो ने तो, उनके भी मुँह मोड़े
कितने प्रलय हुए इस भूमि पर
कभी धरा भूकम्प से कंपकंपा उठी
कभी जलजला से कितने आशीयाने बहे
सब कष्टो को है हमने सहे
हर मुसीबत में एक बात दुनिया ने जानी है
हार कहाँ हमने मानी है

बेघर न हो कोई , न पड़े खाने के लाले
इसकी भी राह , हमने हैं निकाले
हर संकट से अब, मिलकर पार लगानी है
मायूस पड़े चेहरों पर ,मुस्कान फिर खिलानी है
नई दिवस की नई सुबह, फिर हमें लानी है
विश्व गुरु बनके, राह फिर दिखानी है
हार कहाँ हमने मानी है !