पापमोचनी एकादश अवतारे,संवत 1073,
राजस्थान,जिला-नागौर,कलावा ग्राम।
समाजसुधारक, दयालु – धर्मात्मा
श्री रामशाह जी,इनके जनक के नाम।।
बचपन से ही भक्तिभाव से ओतप्रोत,
कान्हा के मधुर गीत गाती थीं,
कान्हा-कान्हा रटती रहती वो,
सिवाय कान्हा के,उन्हें कुछ न भाती थीं।
जैसे राधा-मीरा,किशना की दीवानी थी।
कर्मा को भी कान्हा संग प्रीत निभानी थी
सहसा घर में कुछ सुगबुगाहट आई
कर्मा के ब्याह की पिताश्री ने बात चलाई
बचपन बीता, आई जवानी
माँ कर्मा की बनी नई कहानी,
न चाहते हुए भी माता-पिता ने,
श्री पद्मा जी संग ब्याह रचा दी।।
सामाजिक कार्य,भगवान की भक्तिभाव से,
माँ कर्मा की यशकीर्ति चहुँ ओर बढ़ने लगी
आस – पास सर्वत्र कर्मा की बढ़ती छवि देख,
राजा के मन में ईर्ष्या-द्वेष सुलगने लगी।।
कर्मा को नीचा दिखाने मंत्रियों की दरबार बुलाई
पतित-पावनी को गिराने मंत्रियों ने उपाय सुझाई
अत्याचारी राजा द्वारा कुण्ड तेल से भरवाई।
कैसे जिएंगे निर्धन प्रजा कुछ समझ न आई।।
तभी, माँ कर्मा बंशीधर से गुहार लगाई
दयामय,मुरलीधारी निर्बलों की रक्षा करो
कर दिखाओ कुछ ऐसा चमत्कार
हम सबके कष्ट हर, हमारी झोली भरो।।
सुन गुहार माँ कर्मा की, भगवान धरा पर आई
कुण्ड तेल से लबालब, कान्हा ने चमत्कार दिखाई
हर्षित-पुलकित प्रजा,शर्मसार राजा आँख झुकाई
घटना से माँ कर्मा की चहुँओर हुई अति बड़ाई।।
किंचित दिनों में श्री पद्मा जी स्वर्ग सिधारे
माँ कर्मा नरवर ग्राम में हो गई बेसहारे
असहायों के होते हैं गिरधर, बात समझ में आई
कृष्णा से मिलने आतुर धाम जगगन्नाथ दौड़ लगाई
हाथ में लिए खिचड़ी, पहुँच गई जगन्नाथ द्वारे
चिथड़े वसनों में देख, पांडा उनको दुत्कारे ,
फ़िर भी माँ कर्मा अपनी हिम्मत न हारे
माँ कर्मा की मुख से, श्री कृष्णा निकलीं चीत्कारें।
चली गईं सिंधुतट पर,नहीं रुकी उनके पाँव
बिना अन्न-जल करने लगीं कान्हा की भक्ति भाव,
भक्ति देख दौड़े आये कान्हा माँआँचल की छाँव
बैठ गोदी में खाये खिचड़ी, मन हुए बहुत ललचांव ||
इतने में आये सहसा पांडा-पुजारी
धरे सारे हाथ में तलवार – कटारी
माँ कर्मा के दोनों हाथ में दे कटारी मारी
माता को कुछ न हुआ, दो गौर वर्ण हाथ कंगन लिए जमीं पे भारी।
फ़िर दे मार पांडा-पुजारी, कटारी पे कटारी,
दो श्यामलवर्ण हस्त लिए चक्र-कमल जमीं पे भारी।
तब से माँ सुभद्रा, भगवान जगन्नाथ के,
दोनों हस्त खण्डित हुए हैं ।
जिन्होंने खण्डित किये भगवान के हस्त
उनके दोनों हस्त सरबस गले हैं।।
माँ कर्मा के सद्कर्मों से,
तैलीय समाज उत्कृष्ट हुए हैं।।
कर्मा माँ की खिचड़ी ख़ाकर श्रीहरि जगगन्नाथ प्रफुल्लित हुए हैं।।
कर्मा माँ की खिचड़ी ख़ाकर श्रीहरि जगगन्नाथ प्रफुल्लित हुए हैं।।
भक्त माता कर्मा की जय—-
–महेन्द्र कुमार साहू
संकुल समन्वयक , संकुल केन्द्र कलँगपुर