@@ सच्चा दोस्त @@

       

एक दिन जंगल में सभी बड़े जानवरों ने मिलकर कुश्ती प्रतियोगिता करवाने का प्लान बनाया। जीतने वाले को इनाम दिया जाएगा, यह भी निर्णय लिया गया।

तय हुआ कि पहले भालू और बघेरा कुश्ती के मैदान में आएंगे और हार-जीत का फैसला करेगा हाथी राजा।

किन्नु गिलहरी बोली- “मैं भी कुश्ती लडूंगी।” उसकी बात सुनकर सारे जानवर उसका मजाक उड़ाते हुए बोले- “तुम मक्खी से लड़ो कुश्ती।” एक बोला- “बित्ता भर की जान, मगर देखो तो कैसे सबकी बराबरी करने की सोच रही है। यह क्या कर पाएगी?”

यह सुनकर गिलहरी एक कोने में चुपचाप जाकर बैठ गई। तभी भालू की चीख सुनाई दी। सब उधर दौड़े। देखा कि कुश्ती लड़ते वक्त भालू का पैर एक मोटी रस्सी में फंस गया था। कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया। तभी गिलहरी दौड़ी हुई आई और उसने अपने तेज धारदार दांतों से रस्सी काट दी। भालू की जान में जान आई।

तभी ईनाम देने की घोषणा हुई- ‘भालू आज का विजेता है।’ भालू ने आगे बढ़कर ट्रॉफी ली और गिलहरी को देते हुए कहा- “विजेता मैं नहीं, किन्नू है, जिसने मेरी मदद की।”

शिक्षा:-
सच्चा दोस्त वही होता है, जो मुसीबत में काम आए।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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पाप का गुरु कौन ???

⚜️ आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️

      

एक समय की बात है। एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद गांव लौटे। पूरे गांव में शोहरत हुई कि काशी से शिक्षित होकर आए हैं और धर्म से जुड़े किसी भी पहेली को सुलझा सकते हैं।

शोहरत सुनकर एक किसान उनके पास आया और उसने पूछ लिया- पंडित जी आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है?

प्रश्न सुन कर पंडित जी चकरा गए, उन्होंने धर्म व आध्यात्मिक गुरु तो सुने थे, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और ज्ञान के बाहर था।

पंडित जी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा रह गया है। वह फिर काशी लौटे। अनेक गुरुओं से मिले लेकिन उन्हें किसान के सवाल का जवाब नहीं मिला।

अचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक गणिका (वेश्या) से हो गई। उसने पंडित जी से परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी। गणिका बोली- पंडित जी ! इसका उत्तर है तो बहुत सरल है, लेकिन उत्तर पाने के लिए आपको कुछ दिन मेरे पड़ोस में रहना होगा।

पंडित जी इस ज्ञान के लिए ही तो भटक रहे थे। वह तुरंत तैयार हो गए। गणिका ने अपने पास ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। पंडित जी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे। अपने नियम-आचार और धर्म परंपरा के कट्टर अनुयायी थे।

गणिका के घर में रहकर अपने हाथ से खाना बनाते खाते कुछ दिन तो बड़े आराम से बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला। वह उत्तर की प्रतीक्षा में रहे। एक दिन गणिका बोली- पंडित जी ! आपको भोजन पकाने में बड़ी तकलीफ होती है। यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं। आप कहें तो नहा-धोकर मैं आपके लिए भोजन तैयार कर दिया करूं।

पंडित जी को राजी करने के लिए उसने लालच दिया- यदि आप मुझे इस सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन आपको दूंगी।

स्वर्ण मुद्रा का नाम सुनकर पंडित जी विचारने लगे। पका-पकाया भोजन और साथ में सोने के सिक्के भी ! अर्थात दोनों हाथों में लड्डू हैं। पंडित जी ने अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए।

उन्होंने कहा- तुम्हारी जैसी इच्छा, बस विशेष ध्यान रखना कि मेरे कमरे में आते-जाते तुम्हें कोई नहीं देखे।

पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर उसने पंडित जी के सामने परोस दिया। पर ज्यों ही पंडित जी ने खाना चाहा, उसने सामने से परोसी हुई थाली खींच ली। इस पर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है ?

गणिका ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है। यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का पानी भी नहीं पीते थे, मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया। यह लोभ ही पाप का गुरु है।

शिक्षा:-
हमें किसी भी तरह के लोभ-लालच को जीवन में अपनाएं बिना जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

*!! मंदबुद्धि बालक !!*

⚜️ आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️

विद्यालय में सब उसे मंदबुद्धि कहते थे । उसके गुरुजन भी उससे नाराज रहते थे क्योंकि वह पढने में बहुत कमजोर था और उसकी बुद्धि का स्तर औसत से भी कम था।

कक्षा में उसका प्रदर्शन हमेशा ही खराब रहता था। और बच्चे उसका मजाक उड़ाने से कभी नहीं चूकते थे। पढने जाना तो मानो एक सजा के समान हो गया था, वह जैसे ही कक्षा में घुसता और बच्चे उस पर हंसने लगते, कोई उसे महामूर्ख तो कोई उसे बैलों का राजा कहता, यहाँ तक की कुछ अध्यापक भी उसका मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते। इन सबसे परेशान होकर उसने स्कूल जाना ही छोड़ दिया।

अब वह दिन भर इधर-उधर भटकता और अपना समय बर्बाद करता। एक दिन इसी तरह कहीं से जा रहा था , घूमते-घूमते उसे प्यास लग गयी। वह इधर-उधर पानी खोजने लगा। अंत में उसे एक कुआं दिखाई दिया। वह वहां गया और कुएं से पानी खींच कर अपनी प्यास बुझाई। अब वह काफी थक चुका था, इसलिए पानी पीने के बाद वहीं बैठ गया। तभी उसकी नज़र पत्थर पर पड़े उस निशान पर गई जिस पर बार-बार कुएं से पानी खींचने की वजह से रस्सी का निशान बन गया था। वह मन ही मन सोचने लगा कि जब बार-बार पानी खींचने से इतने कठोर पत्थर पर भी रस्सी का निशान पड़ सकता है तो लगातार मेहनत करने से मुझे भी विद्या आ सकती है। उसने यह बात मन में बैठा ली और फिर से विद्यालय जाना शुरू कर दिया।

कुछ दिन तक लोग उसी तरह उसका मजाक उड़ाते रहे पर धीरे-धीरे उसकी लगन देखकर अध्यापकों ने भी उसे सहयोग करना शुरू कर दिया। उसने मन लगाकर अथक परिश्रम किया। कुछ सालों बाद यही विद्यार्थी प्रकांड विद्वान वरदराज के रूप में विख्यात हुआ, जिसने संस्कृत में मुग्धबोध और लघुसिद्धांत कौमुदी जैसे ग्रंथों की रचना की।

शिक्षा:-
मित्रों! हम अपनी किसी भी कमजोरी पर जीत हासिल कर सकते हैं, बस आवश्यकता है कठिन परिश्रम और धैर्य के साथ अपने लक्ष्य के प्रति स्वयं को समर्पित करने की..!!

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

@@बाज की उड़ान@@

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एक बार की बात है कि एक बाज का अंडा मुर्गी के अण्डों के बीच आ गया. कुछ दिनों बाद उन अण्डों में से चूजे निकले, बाज का बच्चा भी उनमें से एक था. वो उन्हीं के बीच बड़ा होने लगा. वो वही करता जो बाकी चूजे करते, मिट्टी में इधर-उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्हीं की तरह चूँ-चूँ करता. बाकी चूजों की तरह वो भी बस थोडा सा ही ऊपर उड़ पाता, और पंख फड़-फडाते हुए नीचे आ जाता.

फिर एक दिन उसने एक बाज को खुले आकाश में उड़ते हुए देखा. बाज बड़े शान से बेधड़क उड़ रहा था. तब उसने बाकी चूजों से पूछा कि- “इतनी ऊंचाई पर उड़ने वाला वो शानदार पक्षी कौन है?”

तब चूजों ने कहा- “अरे वो बाज है, पक्षियों का राजा, वो बहुत ही ताकतवर और विशाल है. लेकिन तुम उसकी तरह नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम तो एक चूजे हो.”

बाज के बच्चे ने इसे सच मान लिया और कभी वैसा बनने की कोशिश नहीं की. वो ज़िन्दगी भर चूजों की तरह रहा और एक दिन बिना अपनी असली ताकत पहचाने ही मर गया.

दोस्तों! हममें से बहुत से लोग उस बाज की तरह ही अपना असली Potential जाने बिना एक Second-Class ज़िन्दगी जीते रहते हैं. हमारे आस-पास की Mediocrity हमें भी Mediocre बना देती है. हम ये भूल जाते हैं कि हम अपार संभावनाओं से पूर्ण एक प्राणी हैं. हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है, पर फिर भी बस एक औसत जीवन जी के हम इतने बड़े मौके को गँवा देते हैं.

शिक्षा:-
आप चूजों की तरह मत बनिए। अपने आप पर, अपनी काबिलियत पर भरोसा कीजिए। आप चाहे जहाँ हों, जिस परिवेश में हों, अपनी क्षमताओं को पहचानिए और आकाश की ऊँचाइयों पर उड़ कर दिखाइए, क्योंकि यही आपकी वास्तविकता है।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है
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