कल तक पैसे की हवा थी साहब
आज हवा के पैसे हैं
कभी सोचा नहीं था,
ऐसे भी दिन आएँगें।🤔
छुट्टियाँ तो होंगी पर,
मना नहीं पाएँगे । 🛳️
आइसक्रीम का मौसम होगा,
पर खा नहीं पाएँगे ।🍦
रास्ते खुले होंगे पर,
कहीं जा नहीं पाएँगे। 🛤️
जो दूर रह गए उन्हें,
बुला भी नहीं पाएँगे।🙅🏼♀️
और जो पास हैं उनसे,
हाथ मिला नहीं पाएँगे।🤝
जो घर लौटने की राह देखते थे,
वो घर में ही बंद हो जाएँगे।🏢
जिनके साथ वक़्त बिताने को
तरसते थे,उनसे ऊब जाएँगें।😏
क्या है तारीख़ कौन सा
वार,ये भी भूल जाएँगे।🤤
कैलेंडर हो जाएँगें बेमानी,
बस यूँ ही दिन-रात बिताएँगे।😓
साफ़ हो जाएगी हवा पर,
चैन की साँस न ले पाएँगे।😷
नहीं दिखेगी कोई मुस्कराहट,
चेहरे मास्क से ढक जाएँगें।😷
ख़ुद को समझते थे बादशाह,
वो मदद को हाथ फैलाएँगे। 🖐️
क्या सोचा था कभी,
ऐसे दिन भी आएंगे।।😯
—
डामन लाल पटेल
सहायक शिक्षक
ग्राम-अरमरीकला