*बादर लबरा होगे…*
अब असाढ़ ले सावन आथे
तरिया नदिया सबो सुखागे
तोर अगोरा म बइठे हन सब
बिन पानी सरी बुध छरियागे
जीव जिनावर तड़पे लागे
जोते खेत करवाही गड़थे
तीप के गोड़ के भोमरा होगे
लागत हे बादर लबरा होगे
तात तात लागे भिनसरहा
घाम घरी कस सुरुज ह पेरहा
अब्बड़ आस ले नजर गडाहे
भंडार बरसही सोच किसनहा
छोल चाँच तैयार खेत ह
बाट जोहत तैयार नगरिहा
आही बरोडा फेर उड़ाही
छाये बादर कबरा होगे
लागत हे एसो बादर लबरा होगे….
