बहुत बनाया मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे और गिरजाघर
कहि प्रेम की अजब निशानी
कही बसाया मूर्तियों का शहर
छुद्र विषाणु के आगे बेबस
मानवता सिरमौर कहाँ है
मानव के सेवा का मंदिर
स्नेह शांति का ठौर कहाँ है…
बन्द कफ़न के भीतर देखो
रक्त हरा है या फिर लाल
कौन मर रहा हिन्दू या मुस्लिम
मजहब पर मचे कितने बवाल
मानव के बंटवारे करते
बन्द पड़े सारे दरवाजे
कौन सुनेगा क्रंदन अपना
किसे लगाए हम आवाजे
थम कर धीमी हुई हलचलें
आबादी का शोर कहाँ है
मानव के सेवा का मंदिर
शांति स्नेह का ठौर कहां है…
जीवन के हर कदम के साथी
रास्तों के वो शीतल छाँह
समेट लिए कितने पेड़ों को
लालच ने फैला अपने बाँह
दूभर हुआ अब प्राणवायु भी
दिन कैसे अब शेष रह गए
खूब बहाया जल की रेली
अब केवल अवशेष रह गए
सोचो अपनी नादानी को
कल वाली वो भोर कहाँ है…..
