नमस्कार साथियों , आज मैं आपको छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध स्थल भोरमदेव के बारे में बताने जा रहा हूँ ।
भोरमदेव का मंदिर
छत्तीसगढ़ का सर्वाधिक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है । यह वर्तमान कवर्धा जिले में स्थित एक मंदिर है , जिसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है । यह मंदिर जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम की तरफ चौरागांव नामक जगह पर स्थित है । यहां पर प्राचीन काल में फनी नागवंशी राजाओं का शासन था । भोरमदेव मंदिर की उत्कृष्ट कला शिल्प और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यह एक महत्वपूर्ण शिव मंदिर है ।
दंत कथा के अनुसार गोंड राजाओं के देवता भोरमदेव थे , जो कि भगवान शिव जी का ही एक रूप है (बूढ़ा देव ) इसलिए इस मंदिर का नाम भोरमदेव रखा गया होगा । मंदिर के मंडप पर बैठे एक दाढ़ी – मूंछ वाले योगी की मूर्ति में उकेरे गए लेख के अनुसार इस का समय कल्चुरी संवत 840 अंकित किया गया है। इस मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी में सन 1089 संवत 840 में राजा गोपाल देवराय ने कराया था । मंदिर का मुख पूर्व दिशा ओर है मंदिर में तीन प्रवेश द्वार है ,जिससे सीधे मंडप तक प्रवेश कर सकते हैं । मंदिर 5 फीट ऊँचेे चबूतरे पर बनाया गया है । मंडप की लंबाई लगभग 60 फीट और चौड़ाई लगभग 40 फीट है । मंडप के बीच में 4 खम्भे भी है तथा बाहरी किनारे पर 12 खम्भे हैं ।
मंडप में लक्ष्मी , विष्णु एवं गरुड़ की मूर्ति है तथा ध्यानमग्न एक योगी राजपुरुष की प्रतिमा भी रखी गई है। गर्भगृह के मध्य में काले पत्थर से बना हुआ एक शिवलिंग स्थापित किया गया है । साथ ही गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग तथा गणेश जी की नृत्य करती हुई प्रतिमा स्थापित की गई है , वहीं पर पास में ही उपासना रत स्त्री – पुरूष की प्रतिमा भी स्थापित की गई है । भोरमदेव मंदिर नागर शैली में बनाया गया , हिन्दू स्थापत्यकला का एक अद्भुत नमूना है । मंदिर के बाहर अति मनमोहक चित्र उकेरे गए हैं , जिसमें मिथुन मूर्तियां , हाथी – घोड़े ,नृत्यरत स्त्री-पुरुष , गणेशजी , नटराज आदि की मूर्तियां स्थित हैं । भोरमदेव अपनी कला और शिल्प के लिए विश्व विख्यात है , यहां दूर-दूर से लोग इस कला को निहारने के लिए आते हैं ।

भोरमदेव के आसपास अनुपम सौंदर्य , घने जंगल , पहाड़ और झील है । भोरमदेव मंदिर से कुछ दूरी पर एक और प्रसिद्ध मंदिर है , जिसे मड़वा महल कहा जाता है । यह वर्तमान समय में खंडित अवस्था में है, इसकी बाहरी दीवारों पर भी मिथुन मूर्तियां बनाई गई हैं ।गर्भगृह की छत काले चमकदार पत्थरों से बनी है । यहां से प्राप्त शिलालेखों से ज्ञात होता है कि मड़वा महल का निर्माण भी चौदहवीं शताब्दी में हुआ था । यह संभवतः नाग वंश के राजा रामचंद्र ने हैहयवंशी राजकुमारी अंबिका देवी से विवाह किया था इसी समय इस महल का निर्माण किया गया होगा ऐसा इतिहासकारों का कहना है ।

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