हे प्रनतपाल हे कर्मवीर
है तुंग पुरुष हे महावीर
प्रतिहारी सीमाओं के प्रखर
बन खड़े हिन्द के दृढ़ प्राचीर

गौरव इस मिट्टी का तुमसे
उत्तुंग इरादों के धानी
तुमसे भारत का विश्व गान
निज देश प्रेम के अभिमानी
हिमगिरि की चोटी विशाल
धरती या फिर हो पाताल
निज शौर्य पराक्रम के दम
न झुका कभी भारत का भाल
बन पवन दूत बरसाया अनल
आतंकी लंका में विनाश
अब लोहा माने सकल विश्व
कर दो नापको का सर्वनाश
जन-जन का मन हो अधीर
करती पुकार हे तरुण वीर
उठे आंख जो बुरी नियत
नरसिह रूप ले छाती चीर
गर गिरे शहीदी लहू बून्द
वह रक्तबीज हो जायेगा
हर युवा हिन्द के खातिर
हँसकर अर्पित हो जाएगा ।।

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