किसान

हाँ मै किसान हूँ , मिट्टी से जुड़ा एक आम इंसान हूँ ।

खेती मेरा कर्म है ,और मेहनत मेरी पूजा के फूल हैं ।

मैं लोगो के जीवन जीने का ,नीव  स्तम्भ आधार  हूँ ।

मैं  शरीर  से  नही ,मैं  किस्मत से  बहुत  बीमार हूँ ।

मैं  शायद  लोंगो  को  ख़ुशहाल  नजर मैं आता हूँ ।


हाँ मैं किसान हूँ ,परिश्रम और लगन की मैं खान हूँ।

मौसम कितना भी बिगड़ जाये मैं लड़ने को तैयार हूँ ।

मैं मेहनत से नही ,मैं फसलों खराब से दुखी होता हूँ ।

मैं देश की अर्थव्यवस्था का  ,मैं  प्रथम  भागीदार हूँ ।

मैं खेतों और खलियानों लहलहाता हुआ गुलिस्तान हूँ ।


हाँ मैं किसान हूँ , कर्ज से लदा हुआ आम इंसान हूँ ।

हाँ इस महगाई के दौर में , खेती करने को मजबूर हूँ ।

आमदनी कुछ नही , फिर भी ख़र्चा जादा कर जाता हूँ ।

कर्ज के चक्कर में , साहूकार या सरकार फेरे लगता हूँ ।

इतना मेहनत करने के बाद , मैं कर्ज अदा न कर पाता हूँ ।

तो गाँव के बरगद या खलियानों में फंदे गले लगता हूँ ।

हाँ मैं किसान हूँ , मिट्टी से जुड़ा एक आम इंसान हूँ ।

मनोज कुमार ठाकुर       

  दुर्ग छत्तीसगढ़

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