विश्व कविता दिवस की शुभकामनाएं
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चाह नही मैं चारण पद हो
नृप का गौरव गुण गाऊ
चाह नही मैं श्रृंगारित हो,
प्रेयसी का मन बहलाऊँ
चाह नहीं मैं पात्र हंसी का
बनकर अट्ठहास लगवाऊ
चाह नही मैं देवों की आरती हो
अंधभक्ति दिखलाऊँ
चाह नही मैं राजनीति के कीचड़ से
खुद पर दाग लगाऊँ
शोषित पीड़ित मानवता की
सेवा का हो राग जहाँ
लहू बहाकर मातृभूमि की
रक्षा में हो त्याग जहाँ
आँसू क्रंदन देश प्रेम तुम
लेकर वर्णों का आकार
संयोजित हो रूप कविता का
कर देना मेरा स्वप्न साकार ।।
