माँ शारदे वन्दना
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वर दे! वर दे ! शारदे वर दे !
हे वीणा वादनी, हंसवाहिनी , वागीश्वरी
अंधकार को दूर कर जगमग जग कर दे
सुषुप्त अचेतन मन मेरा ज्योतिर्मय कर दे
वर दे ! वर दे ! शारदे वर दे !
नवल सृजन को नव अंकुर ,निज मन में मेरे भर दे
ज्ञान ज्योति प्रदीप्त कर ,भवसागर से पार कर दे
ज्ञान बिना न हो इति मेरा ,ज्ञान पुंज उर में भर दे
मैं अज्ञानी विवेक शून्य, भटक रहा हूँ अंधकार में
तिमिर घना अब संत्रास हर उजास अन्तस् में कर दे
वर दे! वर दे! शारदे वर दे!
तुम नित्य अविनाशी अक्षुण्ण गगन,तेरी छाया शीतल चन्दन
तुझमें अर्पण मेरा मन , चरणों में तेरी शत् – शत् अभिनन्दन
तेरा ही अवयव हूँ मैं, ममतामयी आँचल की छाँव कर दे
पीड़ा हर सकल तन की , दिव्य अलौकिक जीवन कर दे
वर दे! वर दे! शारदे वर दे!
मैं असहाय , विवश , लाचार नित बहते लोचन नीर
उद्विग्न व्याकुल मन मेरा, धरु ऊर में कैसे धीर,
तुम उदार सरस् हृदय, मैं विरक्ति निष्ठुर मलिन
तुम श्रेष्ठ ललित मंजुल सरस् मैं असभ्य दम्भी नीरस
चंचल यह मन मेरा दृढ़ स्थिर अटूट विमल कर दे
वर दे! वर दे ! शारदे वर दे !
*दीन दुखी शोषित के प्रति अनुराग भाव उर भर दे
निश्छल, निष्कपट हो मन वात्सल्य रस भाव भर दे
ध्यान मग्न चित स्नेह अनुरंजित कर दे
मोद -प्रमोद उत्साहित हर्षित मन कर दे
हे करुणामयी दयानिधि, दया मुझ पर कर दे
वर दे! वर दे! शारदे वर दे!
सप्त सुर सरगम संगीतमय, गीत प्रीति मम उर कर दे
नवल गीत नव लय स्वर,वीणा की झंकार मन में भर दे
मैं नव अंकुर बीज का, पल्लवित पुष्पित मुझे कर दे
हे महादेवी जय की प्रसाद दे, मुझे पन्त ,निराला कर दे
वर दे ! वर दे ! शारदे वर दे !
