चुन-चुन ईंट, सुंदर महल मैं बनाता हूँ,
मेहनत मजदूरी कर,घरौंदा लोगों का सज़ाता हूँ।
मेहनत करता भरपूर हूँ, मैं मजदूर हूँ।।
खेतों में किसान संग,मज़दूरी मैं कमाता हूँ,
हलधर संग खेतों में,सुनहरी फ़सल उपजाता हूँ।
सबकी भूख मिटाता हूँ,मैं मजदूर हूँ।।
कारखानों में पिसता हूँ,रोज़मर्रा मैं घिसता हूँ,
अपनी मेहनत से, उद्योगपति बनाता हूँ।
ख़ुद मजदूर कहलाता हूँ, मैं मजदूर हूँ।।
लोगों द्वारा फैलाई गटर की गंदगी,
मेहत्तर बनकर शहर स्वच्छ बनाता हूँ।
मैं स्वच्छता दूत हूँ, मैं मजदूर हूँ।।
पापी पेट की ख़ातिर तिल-तिल मैं मरता हूँ,
जाने कितने असहनीय पीड़ा सहता हूँ।
फ़िर भी मैं मजबूत हूँ, मैं मजदूर हूँ।।
ख़ुद चिथड़े वसनों में रहता हूँ,
सबके लिए डिज़ाइनर वस्त्र बनाता हूँ,
मैं तंगेहाल हूँ, मैं मजदूर हूँ।।
बच्चों के लालन-पालन को,कौड़ी-कौड़ी ख़ातिर,
लोगों के ताने सुनता,दर-दर मैं भटकता हूँ,
मैं अति मजबूर हूँ, मैं मजदूर हूँ।।
अंत में यूँ कहूँ कि,
रोटी, कपड़ा और मकान,
लोगों को मैं ही दिलाता हूँ।
भरपेट लोगों को खिला,भूखे पेट सो जाता हूँ।।
मैं सिर्फ़ स्वप्न दूत हूँ, मैं मजदूर हूँ।।
🙏 महेन्द्र कुमार साहू की✍️से🙏
खलारी{गुण्डरदेही}