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हमने भेजा वहां कबूतर , उनके गोलों का पैगाम ,
और हिलाओ हाथ साथ में , झेलो अपनी करनी का परिणाम ,
अपने फूलों के गुलदस्तों का , आतंकी उपहार दिया ,
हमने तो अपना हक मांगा था , पर उल्टा गला कटार दिया ,
उठो चलो बस मुट्ठी बांधो , दुश्मन पर तुम वार करो ,
कब तक और रहोगे यारों , अब तो ठोस प्रहार करो ।।

अरे अपने भी भाई हुसैन है, अपने घर भी मुल्ले हैं ,
मियाँ जी के घर पर दिवाली में , मिश्रा के रसगुल्ले हैं ,
और सेवईयाँ बँटी ईद पर , शर्मा और चौहानों में ,
अपना मजहब भले अलग पर, प्रेम बसा गीता और कुरान में,
अरे पशुता कि अब राह छोड़ , इंसानी व्यवहार करो ,
कब तक और रहोगे यारों ,अब तो ठोस प्रहार करो ।।

हिम्मत है तो आगे आओ, क्यूं कवच बनाकर लड़ते तुम ,
कुछ पैसों के गुंडों से , कितने अबोध कुचलते तुम,
कान खोलकर सुनो ध्यान से , है कश्मीर हमारा ताज ,
हम अखंड है सदियों से , और न खंडित होंगे आज ,
अपना घर ना संभलता तुमसे ,अरे शरीफों व्यर्थ न प्रयास करो,
कब तक और सहोगे यारों , अब तो ठोस प्रहार करो ।।
अरे ढूंढो अब तुम घात लगाकर , अपने घर के गद्दारों को ,
उससे तो अच्छी वेश्याएँ भूख मिटाती ,
सौदे तन का ,नहीं देश दीवारों का ,
कब तक झूठे शान के खातिर इतना तुम इतराओगे ,
कितनी लाशों पर आंख बहा , मां बहन बेटियों की भावों संग ,
उजड़ी माँग दिखाओगे ,
अब धाराएं मोड़ सिंधु की , इनको ले लाहौर चलो ,
कब तक और सहोगे यारों , अब तो ठोस प्रहार करो ।।
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