New hindi kavita । कविता संग्रह । रजनी शर्मा बस्तरिया रायपुर छत्तीसगढ़

तुम जैसा पुरुष


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कैसे जान जाते हो तुम,
कि मेरी साईकिल की
घंटी नही बज रही है……..
और मेरी गुड़िया की
टांग टूट गई है………….,..
मेरी स्कर्ट की सिलाई,
उधड़ गई है………… .. …
और मन के मुंडेर पर,
मौसम छाप छोड़े ,
जा रहा है …………………
पुरुष का प्रथम परिचय भी,
मैंने तुमसे ही पाया…….
हर स्त्री के भीतर ,
एक पुरुष होता है।
हां मैं बनना चाहती हूं,
तुम जैसा ही………….

स्मित


………….. ………………..
जीवन रस की प्याली में,
दुलार तुम्हे पिला रहा हूं।
माटी के बिछौने में बैठ कर,
गोदी में तुमको झुला रहा हूं।
जब तुम हो जाओगे सबल,
बांहों में तुमको थाम रहा हूं।
झंझावातों से भरे जीवन में,
जिजीविषा की लोरी सुना रहा हूं।
लिख लेना खुद किस्मत अपनी,
आस भरे स्मित से समझा रहा हूं।।

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