भरी दुपहरी जेठ की गर्मी , संकट बनकर चमके बिजली ,
अकड़न भरी हो पूस की रातें , हो चाहे अनहोनी बातें ।
हर पल – हर क्षण में वसुधा का , गढ़ता नूतन परिधान,
मेहनत की प्रतिमूर्ति जगत में , धरती पुत्र किसान ।।
बंजर धरती का यक्ष प्रश्न , अपने हल से हल करता है ,
मिट्टी को मां का दर्जा दे , सबका पोषण करता है ।
लहू – पसीना सींच धरा को , गढ़ता सुंदर गुलिस्तां ,
मेहनत की प्रतिमूर्ति जगत में , धरती पुत्र किसान।।
खड़ी फसल लहराती जब है , तब मन को यह भाती है ,
बनकर बेटा नौजवान यह , कितनी उम्मीद जगाती है ।
कहीं लाभ या फिर हानि , ना टूटा मन का अरमान
मेहनत की प्रतिमूर्ति जगत में , धरती पुत्र किसान ।।
बड़ी वेदना मन के भीतर , गहरी है चिंता की खाई ,
खेत है गिरवी , सयानी बेटी , संकट में बेटे की पढ़ाई ,
लाल, मुंशी, मियां ,बनिया, सब के कर्ज तले परेशान,
मेहनत की प्रतिमूर्ति जगत में , धरती पुत्र किसान ।।
बनें सुर्खियां कभी अखबारों की , कभी राजनीति का हिस्सा,
घर – कपड़ों को कौन कहे , कल के भोजन की है चिंता ।
मानव पहुंच गया मंगल पर , पर भी फसलें ताके आसमान ,
मेहनत की प्रतिमूर्ति जगत में , धरती पुत्र किसान ।।
