“छपासी”

मैडम जी यह जो बिमारी है ना छपासी यह कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक है। निष्ठा मैसेज पढ़ कर सन्न रह गई। अखबार का वह तथाकथित “खोजी”जो बार बार निष्ठा से मनुहार करता रहता था। मैडम जी कोई न्युज हो तो हमें जरूर बताइएगा।
किसी और को खब़र देने से पहले हमें जरूर बताएं।निष्ठा ने कहा जी सर आपकी दी गई उपाधि मैं आजीवन याद रखूंगी।वैसे मैं अपने कार्यों के कारण ही छपती आ रही हूं। धन्यवाद।अगले दिन अखबार की हेडिंग देख निष्ठा अवाक रह गई।आला दर्जे के तेज
तर्रार अफसर का जोरदार खंडन वाला स्टेटमेंट छपा था।
जिसमें कहा गया था कि उपरोक्त कार्य किसी कंपनी को फायदा पहूंचाने के लिये नहीं की गई है।यह कार्य हमारे विभाग के सेवानिष्ठ कर्मचारियों द्वारा खुद किफायत से बनाई गई है।
इस झूठी प्रकाशित ख़बर के एवज में उस तथाकथित खोजी द्वारा जब तक सार्वजनिक रुप से माफी नहीं मांगी जायेगी तब तक अठ्ठाईस लाख कर्मनिष्ठ,ईमानदार सदस्यों द्वारा उक्त अखबार का बहिष्कार किया जायेगा।निष्ठा सोचने लगी
“छपासी” (छपने के लिए किसी भी स्तर तक जाने वाला) कौन????
“उसके बच्चे अच्छे निकले”

खाने का डिब्बा खोलकर खाते खाते मिसेज सिंह की आंखें भीग गई।मैंने पूछा सब्जी तीखी है क्या?हां रे कहकर चली गईं क्लास में।अवकाश में बिना अनुमति व्यक्तिगत, पारिवारिक,पृष्ठभूमि पर धुंआधार समीक्षायें
बरसने लगीं।
नलीनी भले ही अच्छी ना हो पर उसके बच्चे अच्छे निकले।और मिसेज सिंह और उनके तीनों बच्चे बर्बाद।श्रीमती त्रिवेदी का कथित उद्घघोष।कमरे से गुजरते सिंह मैडम ने सुन लिया आंखें भीग गई। बरसों बाद आज मिसेज त्रिवेदी को वृद्धाश्रम में पा कर मिसेज सिंह के मुंह से अनायास निकल पड़ा।
मैम आप यहां? उनकी नम आंखों ने सब कुछ कह दिया।उनके हाथों में फल थमा कर मिसेज सिंह अपने तीनों
बच्चों का सहारा लिये वृद्धाश्रम से लौट रहीं थीं।
