तकलीफ़ तब नही हुई मुझे
आसमां के नीचे बसेरा हुआ।
भूखे पेट सोया ,
खाली पेट सवेरा हुआ ।
चलते रहे नंगे पांव,
दूर कहीं अपने गांव
मिला न ज़रा सी छांव,
छीलते रहे मेरे पांव
तकलीफ़ तब हुई मुझे ।
जब देश में ही अपने,
प्रवासी कहा मुझे
क्या टुकड़े हो गये है? देश के फिर!
या शर्म आती है तुम्हें
मजदूर को अपना कहने में!
नेता प्रवासी नहीं हुए
जो कभी यहाँ से तो कभी वहाँ से
लड़ते हैं चुनाव,
पद की लोलुप्सा में जो अक्सर,
जनमत को रखकर ताक में
कभी इस दल तो कभी उस दल में
करते रहते हैं प्रवास
पद पर ही होते हैं जिनके झुकाव
फिर जनता लगाते हैं जिनके चक्कर
बन के घनचक्कर
नहीं कहलाते वो नेता प्रवासी
कहलाते हैं वो भारतवासी
प्रवासी नही हुए ब्योरोकेट्स
भरते हैं जो केवल अपने सूटकेस
चूस के योजनाओं का रस
जो बनते हैं हमारे नाम पर
और देते हैं छिलके हमें इनाम पर
मलाईदार पदों पर जो करते हैं अक्सर प्रवास
नही कहलाते वो प्रवासी
कहलाते हैं वो भारत वासी
पर मजदूर हुए हैं आज
अपने ही देश में प्रवासी ।
