समय की रेत हिन्दी कविता

समय की रेत
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समय की रेत फिसलती हुई
जुदा हुए तुमसे यूँ जैसे
जिस्म से जां निकलती हुई
इंतजार करते रहे ताउम्र
जवां उम्र हुए अब ढलती हुई
सपने बुने थे कितने साथ जीने को
कहर बनकर टूटी दुनिया हम पर
काली घटा जैसे बरसती हुई
टिक नही पाये दुनिया की रीत पर
उड़ गये सपनो का आशियाना
तूफान में छप्पर जैसे उड़ती हुई
दो जिस्म एक जान थे हम
सांसो से साँस जैसे मिलती हुई
जुदा हुए तुमसे यूँ जैसे
जिस्म से जां निकलती हुई
मिलन अब हो नहीं सकता
समय की रेत अब फिसलती हुई

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