अरे यारों कब सीनियर सिटिजन हो गये, पता ही नहीं चला।
कैसे कटा 21 से 61 तक का यह सफ़र, पता ही नहीं चला ।
क्या पाया, क्या खोया, क्यों खोया, पता ही नहीं चला !
बीता बचपन, गई जवानी, कब आया बुढ़ापा, पता ही नहीं चला ।
कल बेटे थे, कब ससुर हो गये, पता ही नहीं चला !
कब पापा से नानु, दादू बन गये, पता ही नहीं चला ।
कोई कहता सठिया गये, कोई कहता छा गये, क्या सच है, पता ही नहीं चला !
पहले माँ बाप की चली, फिर बीवी की चली, अपनी कब चली, पता ही नहीं चला !
बीवी कहती अब तो समझ जाओ, क्या समझूँ, क्या न समझूँ, न जाने क्यों, पता ही नहीं चला !
दिल कहता जवान हूँ मैं, उम्र कहती नादान हूँ मैं, इस चक्कर में कब घुटनें घिस गये, पता ही नहीं चला !
झड़ गये बाल, लटक गये गाल, लग गया चश्मा, कब बदलीं यह सूरत, पता ही नहीं चला !
अरे यारों कब सीनियर सिटिजन हो गये, पता ही नहीं चला।
कैसे कटा 21 से 61 तक का यह सफ़र, पता ही नहीं चला ।
क्या पाया, क्या खोया, क्यों खोया, पता ही नहीं चला !
बीता बचपन, गई जवानी, कब आया बुढ़ापा, पता ही नहीं चला ।
कल बेटे थे, कब ससुर हो गये, पता ही नहीं चला !
कब पापा से नानु, दादू बन गये, पता ही नहीं चला ।
कोई कहता सठिया गये, कोई कहता छा गये, क्या सच है, पता ही नहीं चला !
पहले माँ बाप की चली, फिर बीवी की चली, अपनी कब चली, पता ही नहीं चला !
बीवी कहती अब तो समझ जाओ, क्या समझूँ, क्या न समझूँ, न जाने क्यों, पता ही नहीं चला !
दिल कहता जवान हूँ मैं, उम्र कहती नादान हूँ मैं, इस चक्कर में कब घुटनें घिस गये, पता ही नहीं चला !
झड़ गये बाल, लटक गये गाल, लग गया चश्मा, कब बदलीं यह सूरत, पता ही नहीं चला !
समय बदला, मैं बदला, बदल गये मेरे यार भी, कितने छूट गये, कितने रह गये यार, पता ही नहीं चला !
कल तक अठखेलियाँ करते थे यारों के साथ, कब सीनियर सिटिज़न हो गये, पता ही नहीं चला !
अभी तो जीना सीखा है, कब समझ आई, पता ही नहीं चला !
न दफ़्तर, न कोई बाॅस, न काम का कोई बोझ, कब हुए आज़ाद पता ही नहीं चला !
आदर सम्मान, प्रेम और प्यार, वाह वाह करती, कब आई और बीत गयी ज़िन्दगी, पता ही नहीं चला ।
बहु, जमाईं, नाते, पोते, ख़ुशियाँ आई, कब मुस्कुराई उदास ज़िन्दगी, पता ही नहीं चला ।
जी भर के जी ले प्यारे फिर न कहना मुझे पता ही नहीं चला।
समय बदला, मैं बदला, बदल गये मेरे यार भी, कितने छूट गये, कितने रह गये यार, पता ही नहीं चला !
कल तक अठखेलियाँ करते थे यारों के साथ, कब सीनियर सिटिज़न हो गये, पता ही नहीं चला !
अभी तो जीना सीखा है, कब समझ आई, पता ही नहीं चला !
न दफ़्तर, न कोई बाॅस, न काम का कोई बोझ, कब हुए आज़ाद पता ही नहीं चला !
आदर सम्मान, प्रेम और प्यार, वाह वाह करती, कब आई और बीत गयी ज़िन्दगी, पता ही नहीं चला ।
बहु, जमाईं, नाते, पोते, ख़ुशियाँ आई, कब मुस्कुराई उदास ज़िन्दगी, पता ही नहीं चला ।
जी भर के जी ले प्यारे फिर न कहना मुझे पता ही नहीं चला।