CHAMATKAR a short story in hindi

            *!! चमत्कार !!*

बरसात का मौसम था। एक बैलगाड़ी कच्ची सड़क पर जा रही थी। यह बैलगाड़ी श्यामू की थी। वह बड़ी जल्दी में था। हल्की-हल्की वर्षा हो रही थी। श्यामू वर्षा के तेज़ होने से पहले घर पहुँचना चाहता था। बैलगाड़ी में अनाज के बोरे रखे हुए थे। बोझ काफ़ी था इसलिए बैल भी ज्यादा तेज़ नहीं दौड़ पा रहे थे।अचानक बैलगाड़ी एक ओर झुकी और रूक गई। हे भगवान, ये कौन-सी नई मुसीबत आ गई अब! श्यामू ने मन में सोचा।

उसने उतरकर देखा। गाड़ी का एक पहिया गीली मिट्टी में धँस गया था। सड़क पर एक गड्ढ़ा था, जो बारिश के कारण और बड़ा हो गया था। आसपास की मिट्टी मुलायम होकर कीचड़ जैसी हो गई थी और उसी में पहिया फँस गया था। श्यामू ने बैलों को खींचा और खींचा फिर पूरी ताक़त से खींचा। बैलों ने भी पूरा ज़ोर लगाया लेकिन गाड़ी बाहर नहीं निकल पाई।

श्यामू को बहुत गुस्सा आया। उसने बैलों को पीटना शुरू कर दिया। इतने बड़े दो बैल इस गाड़ी को बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं, यह बात उसे बेहद बुरी लग रही थी। हारकर वह ज़मीन पर ही बैठ गया। उसने ईश्वर से कहा, हे ईश्वर ! अब आप ही कोई चमत्कार कर दो, जिससे कि यह गाड़ी बाहर आ जाए।

तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी, श्यामू ! ये तू क्या कर रहा है ?अरे, बैलों को पीटना छोड़ और अपने दिमाग का इस्तेमाल कर। गाड़ी में से थोड़ा बोझ कम कर। फिर थोड़े पत्थर लाकर इस गड्ढे को भर। तब बैलों को खींच। इनकी हालत तो देख। कितने थक गए हैं बेचारे!

श्यामू ने चारों ओर देखा। वहाँ आस-पास कोई नहीं था। श्यामू ने वैसा ही किया, जैसा उसने सुना था। पत्थरों से गड्ढा थोड़ा भर गया और कुछ बोरे उतारने से गाड़ी हल्की हो गई।

श्यामू ने बैलों को पुचकारते हुए खींचा – ज़ोर लगा के और एक झटके के साथ बैलगाड़ी बाहर आ गई। वही आवाज़ फिर सुनाई दी, देखा श्यामू, यह चमत्कार ईश्वर ने नहीं, तुमने खुद किया है।

शिक्षा:-
ईश्वर भी उनकी ही मदद करते हैं, जो अपनी मदद खुद करते हैं।

LAKSHYA A SHORT STORY

⚜️ आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️

              *!! लक्ष्य !!*

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एक लड़के ने एक बार एक बहुत ही धनवान व्यक्ति को देखकर धनवान बनने का निश्चय किया। वह धन कमाने के लिए कई दिनों तक मेहनत कर धन कमाने के पीछे पड़ा रहा और बहुत सारा पैसा कमा लिया। इसी बीच उसकी मुलाकात एक विद्वान से हो गई। विद्वान के ऐश्वर्य को देखकर वह आश्चर्यचकित हो गया और अब उसने विद्वान बंनने का निश्चय कर लिया और अगले ही दिन से धन कमाने को छोड़कर पढने-लिखने में लग गया।

वह अभी अक्षर ज्ञान ही सिख पाया था, की इसी बीच उसकी मुलाकात एक संगीतज्ञ से हो गई। उसको संगीत में अधिक आकर्षण दिखाई दिया, इसीलिए उसी दिन से उसने पढाई बंद कर दी और संगीत सिखने में लग गया। इसी तरह काफी उम्र बित गई, न वह धनी हो सका ना विद्वान और ना ही एक अच्छा संगीतज्ञ बन पाया। तब उसे बड़ा दुख हुआ। एक दिन उसकी मुलाकात एक बहुत बड़े महात्मा से हुई। उसने महात्मन को अपने दुःख का कारण बताया।

महात्मा ने उसकी परेशानी सुनी और मुस्कुराकर बोले, “बेटा, दुनिया बड़ी ही चिकनी है, जहाँ भी जाओगे कोई ना कोई आकर्षण ज़रूर दिखाई देगा। एक निश्चय कर लो और फिर जीते जी उसी पर अमल करते रहो तो तुम्हें सफलता की प्राप्ति अवश्य हो जाएगी, नहीं तो दुनियां के झमेलों में यूँ ही चक्कर खाते रहोगे। बार-बार रूचि बदलते रहने से कोई भी उन्नत्ति नहीं कर पाओगे।” युवक महात्मां की बात को समझ गया और एक लक्ष्य निश्चित कर उसी का अभ्यास करने लगा।

शिक्षा:-
हमें भी शुरुआत से ही एक लक्ष्य बनाकर उसी के अनुरूप मेहनत करना चाहिए। इधर-उधर भटकने की बजाय एक ही जगह, एक ही लक्ष्य पर डटे रहने से ही सफलता व उन्नति प्राप्त की जा सकती हैं।

लालच बुरी बला

📜 आज का प्रेरक प्रसंग 📜

एक बार एक बुढ्ढा आदमी तीन गठरी उठा कर पहाड़ की चोटी की ओर बढ़ रहा था। रास्ते में उसके पास से एक हष्ट – पुष्ट नौजवान निकाला। बुढ्ढे आदमी ने उसे आवाज लगाई कि बेटा क्या तुम मेरी एक गठरी अगली पहाड़ी तक उठा सकते हो ? मैं उसके बदले इसमें रखी हुई पांच तांबे के सिक्के तुमको दूंगा। लड़का इसके लिए सहमत हो गया।

निश्चित स्थान पर पहुँचने के बाद लड़का उस बुढ्ढे आदमी का इंतज़ार करने लगा और बुढ्ढे आदमी ने उसे पांच सिक्के दे दिए। बुढ्ढे आदमी ने अब उस नौजवान को एक और प्रस्ताव दिया कि अगर तुम अगली पहाड़ी तक मेरी एक और गठरी उठा लो तो मैं उसमें रखी चांदी के पांच सिक्के और पांच पहली गठरी में रखे तांबे के पांच सिक्के तुमको और दूंगा।

नौजवान ने सहर्ष प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और पहाड़ी पर निर्धारित स्थान पर पहुँच कर इंतजार करने लगा। बुढ्ढे आदमी को पहुँचते-पहुँचते बहुत समय लग गया।

जैसे निश्चित हुआ था उस हिसाब से बुजुर्ग ने सिक्के नौजवान को दे दिये। आगे का रास्ता और भी कठिन था।
बुजुर्ग व्यक्ति बोला कि आगे पहाड़ी और भी दुर्गम है। अगर तुम मेरी तीसरी सोने के मोहरों की गठरी भी उठा लो तो मैं तुमको उसके बदले पांच तांबे की मोहरे, पांच चांदी की मोहरे और पांच सोने की मोहरे दूंगा। नौजवान ने खुशी-खुशी हामी भर दी।

निर्धारित पहाड़ी पर पहुँचने से पहले नौजवान के मन में लालच आ गया कि क्यों ना मैं तीनों गठरी लेकर भाग जाऊँ। गठरियों का मालिक तो कितना बुजुर्ग है। वह आसानी से मेरे तक नहीं पहुंच पाएगा। अपने मन में आए लालच की वजह से उसने रास्ता बदल लिया।

कुछ आगे जाकर नौजवान के मन में सोने के सिक्के देखने की जिज्ञासा हुई। उसने जब गठरी खोली तो उसे देख कर दंग रह गया क्योंकि सारे सिक्के नकली थे।

उस गठरी में एक पत्र निकला। उसमें लिखा था कि जिस बुजुर्ग व्यक्ति की तुमने गठरी चोरी की है, वह वहाँ का राजा है।

राजा जी भेष बदल कर अपने कोषागार के लिए ईमानदार सैनिकों का चयन कर रहे हैं।

अगर तुम्हारे मन में लालच ना आता तो सैनिक के रूप में आज तुम्हारी भर्ती पक्की थी। जिसके बदले तुमको रहने को घर और अच्छा वेतन मिलता। लेकिन अब तुमको कारावास होगा क्योंकि तुम राजा जी का सामान चोरी करके भागे हो। यह मत सोचना कि तुम बच जाओगे क्योंकि सैनिक लगातार तुम पर नज़र रख रहे हैं।

अब नौजवान अपना माथा पकड़ कर बैठ गया। कुछ ही समय में राजा के सैनिकों ने आकर उसे पकड़ लिया।
उसके लालच के कारण उसका भविष्य जो उज्जवल हो सकता था, वह अंधकारमय हो चुका था। इसलिए कहते हैं लालच बुरी बला है..!!

शिक्षा:-
ज्यादा पाने की लालसा के कारण व्यक्ति लालच में आ जाता है और उसे जो बेहतरीन मिला होता है उसे भी वह खो देता है।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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जो होगा अच्छा होगा !

*⚜️ प्रेरक प्रसंग ⚜️*

!! जो होता है अच्छे के लिए ही होता है !!

किसी नगर में एक राजा राज्य करता था। एक शौक जो प्राय सभी राजाओं को होता है, और वो है शिकार खेलने का। एक दिन राजा ने अपने मंत्री से कहा क्यों न शिकार खेलने जंगल में जाया जाए। राजा और मंत्री दोनों शिकार खेलने जंगल में गए। उन्हने एक हिरन दिखाई दिया। राजा ने उस पर प्रहार करने के लिए तीर निकला पर उस पर प्रहार करते समय अपने ही शस्त्र से उसकी अपने अंगुली कट गई। मंत्री ने यह देख कर कहा ‘ईश्वर जो कुछ करता है अच्छा ही करता है।

मंत्री के मुख से यह सुनकर राजा को बहुत बुरा लगा वह सोचने लगे मेरी तो ऊंगली कट गई और यह कहता है कि ईश्वर जो करता है वह अच्छा ही करता है। यह मेरा ही खाता है और मेरी ही हानी चाहता है। इस प्रकार विचार करके उसने अपने मंत्री को अपने यहां से निकल जाने को कहा। चलते समय मंत्री ने फिर कहा ‘ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है। कुछ दिन बाद राजा पुनः शिकार खेलने गया एक हिरण का पीछा करते-करते एक जंगल में जा पहुंचा। हाथी घोड़े नौकर चाकर सब पीछे रह गए। जंगल में एक कबीला पूजन कर रहा था।

उन्हें देवी के लिए नर बलि देनी थी। तभी अचानक उनकी दृष्टि राजा पर पड़ी। बलि के लिए उन्होंने राजा को पकड़ लिया। राजा को बलि के लिए खड़ा किया गया तो किसी की निगाह अचानक राजा के कटी हुई ऊँगली पर पडी। राजा की अंग भंग होने के कारण उन लोगों ने राजा को छोड़ दिया। फिर भटकता हुआ राजा अपने राज्य में वापस पहुंच गया। उसने सोचा इसी कटी हुई अंगुली ने आज मेरे प्राण बचाए हैं। उसे मंत्री की बात का अर्थ समझ में आ गया और उस मंत्री को पुनः मंत्री पद पर रख लिया। राजा ने मंत्री से पूछा, मेरी ऊँगली कटी थी अब तो समझ में आ गया कि क्या अच्छा हुआ, क्योंकि कटी अंगुली के कारण मेरे कारण बच सकें।

पर जब मैंने तुमको नौकरी से निकाला था तब भी तुमने यही कहा था कि ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है उसका क्या अर्थ है। मंत्री ने उत्तर में कहा ‘महाराज यदि आपने मुझे निकाल न दिया होता तो मैं भी उस दिन शिकार के समय आपके साथ होता और मेरे अंग भंग होने के कारण मैं पूरी तरह योग्य समझा जाता और उस कबीले के लोग अपनी कुलदेवी को प्रसन्न करने के लिए मेरी बलि अवश्य चढ़ा देते। राजा की समझ आ गया की जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है।

शिक्षा:-
दोस्तों, हर बुराई में कोई न कोई अच्छाई छुपी होती है।

प्रसंग से, जो भी समस्या हमारे सामने आती हैं उस समय हम यही सोचते हैं की ऐसा क्यों हुआ, ऐसा मेरे साथ क्यों होता है। परंतु हर चीज जो भी हमारे सामने आती है वो कोई न कोई संदेश, शुभ संदेश, कल्याणकारी संदेश लाकर जरूर आती है। जिस समय समस्या आती है उस समय लगता है की सब कुछ गलत हो रहा है परंतु कुछ समय के बाद हमें समझ में आ जाता है कि हां यह चीज इस दृष्टिकोण से मेरे लिए अत्यंत लाभदायक भी है। इसीलिए किसी भी समस्या के बीच सकारात्मक रहना बहुत जरूरी है।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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पाप का गुरु कौन ???

⚜️ आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️

      

एक समय की बात है। एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद गांव लौटे। पूरे गांव में शोहरत हुई कि काशी से शिक्षित होकर आए हैं और धर्म से जुड़े किसी भी पहेली को सुलझा सकते हैं।

शोहरत सुनकर एक किसान उनके पास आया और उसने पूछ लिया- पंडित जी आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है?

प्रश्न सुन कर पंडित जी चकरा गए, उन्होंने धर्म व आध्यात्मिक गुरु तो सुने थे, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और ज्ञान के बाहर था।

पंडित जी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा रह गया है। वह फिर काशी लौटे। अनेक गुरुओं से मिले लेकिन उन्हें किसान के सवाल का जवाब नहीं मिला।

अचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक गणिका (वेश्या) से हो गई। उसने पंडित जी से परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी। गणिका बोली- पंडित जी ! इसका उत्तर है तो बहुत सरल है, लेकिन उत्तर पाने के लिए आपको कुछ दिन मेरे पड़ोस में रहना होगा।

पंडित जी इस ज्ञान के लिए ही तो भटक रहे थे। वह तुरंत तैयार हो गए। गणिका ने अपने पास ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। पंडित जी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे। अपने नियम-आचार और धर्म परंपरा के कट्टर अनुयायी थे।

गणिका के घर में रहकर अपने हाथ से खाना बनाते खाते कुछ दिन तो बड़े आराम से बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला। वह उत्तर की प्रतीक्षा में रहे। एक दिन गणिका बोली- पंडित जी ! आपको भोजन पकाने में बड़ी तकलीफ होती है। यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं। आप कहें तो नहा-धोकर मैं आपके लिए भोजन तैयार कर दिया करूं।

पंडित जी को राजी करने के लिए उसने लालच दिया- यदि आप मुझे इस सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन आपको दूंगी।

स्वर्ण मुद्रा का नाम सुनकर पंडित जी विचारने लगे। पका-पकाया भोजन और साथ में सोने के सिक्के भी ! अर्थात दोनों हाथों में लड्डू हैं। पंडित जी ने अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए।

उन्होंने कहा- तुम्हारी जैसी इच्छा, बस विशेष ध्यान रखना कि मेरे कमरे में आते-जाते तुम्हें कोई नहीं देखे।

पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर उसने पंडित जी के सामने परोस दिया। पर ज्यों ही पंडित जी ने खाना चाहा, उसने सामने से परोसी हुई थाली खींच ली। इस पर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है ?

गणिका ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है। यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का पानी भी नहीं पीते थे, मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया। यह लोभ ही पाप का गुरु है।

शिक्षा:-
हमें किसी भी तरह के लोभ-लालच को जीवन में अपनाएं बिना जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।