LAKSHYA A SHORT STORY

⚜️ आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️

              *!! लक्ष्य !!*

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एक लड़के ने एक बार एक बहुत ही धनवान व्यक्ति को देखकर धनवान बनने का निश्चय किया। वह धन कमाने के लिए कई दिनों तक मेहनत कर धन कमाने के पीछे पड़ा रहा और बहुत सारा पैसा कमा लिया। इसी बीच उसकी मुलाकात एक विद्वान से हो गई। विद्वान के ऐश्वर्य को देखकर वह आश्चर्यचकित हो गया और अब उसने विद्वान बंनने का निश्चय कर लिया और अगले ही दिन से धन कमाने को छोड़कर पढने-लिखने में लग गया।

वह अभी अक्षर ज्ञान ही सिख पाया था, की इसी बीच उसकी मुलाकात एक संगीतज्ञ से हो गई। उसको संगीत में अधिक आकर्षण दिखाई दिया, इसीलिए उसी दिन से उसने पढाई बंद कर दी और संगीत सिखने में लग गया। इसी तरह काफी उम्र बित गई, न वह धनी हो सका ना विद्वान और ना ही एक अच्छा संगीतज्ञ बन पाया। तब उसे बड़ा दुख हुआ। एक दिन उसकी मुलाकात एक बहुत बड़े महात्मा से हुई। उसने महात्मन को अपने दुःख का कारण बताया।

महात्मा ने उसकी परेशानी सुनी और मुस्कुराकर बोले, “बेटा, दुनिया बड़ी ही चिकनी है, जहाँ भी जाओगे कोई ना कोई आकर्षण ज़रूर दिखाई देगा। एक निश्चय कर लो और फिर जीते जी उसी पर अमल करते रहो तो तुम्हें सफलता की प्राप्ति अवश्य हो जाएगी, नहीं तो दुनियां के झमेलों में यूँ ही चक्कर खाते रहोगे। बार-बार रूचि बदलते रहने से कोई भी उन्नत्ति नहीं कर पाओगे।” युवक महात्मां की बात को समझ गया और एक लक्ष्य निश्चित कर उसी का अभ्यास करने लगा।

शिक्षा:-
हमें भी शुरुआत से ही एक लक्ष्य बनाकर उसी के अनुरूप मेहनत करना चाहिए। इधर-उधर भटकने की बजाय एक ही जगह, एक ही लक्ष्य पर डटे रहने से ही सफलता व उन्नति प्राप्त की जा सकती हैं।

लालच बुरी बला

📜 आज का प्रेरक प्रसंग 📜

एक बार एक बुढ्ढा आदमी तीन गठरी उठा कर पहाड़ की चोटी की ओर बढ़ रहा था। रास्ते में उसके पास से एक हष्ट – पुष्ट नौजवान निकाला। बुढ्ढे आदमी ने उसे आवाज लगाई कि बेटा क्या तुम मेरी एक गठरी अगली पहाड़ी तक उठा सकते हो ? मैं उसके बदले इसमें रखी हुई पांच तांबे के सिक्के तुमको दूंगा। लड़का इसके लिए सहमत हो गया।

निश्चित स्थान पर पहुँचने के बाद लड़का उस बुढ्ढे आदमी का इंतज़ार करने लगा और बुढ्ढे आदमी ने उसे पांच सिक्के दे दिए। बुढ्ढे आदमी ने अब उस नौजवान को एक और प्रस्ताव दिया कि अगर तुम अगली पहाड़ी तक मेरी एक और गठरी उठा लो तो मैं उसमें रखी चांदी के पांच सिक्के और पांच पहली गठरी में रखे तांबे के पांच सिक्के तुमको और दूंगा।

नौजवान ने सहर्ष प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और पहाड़ी पर निर्धारित स्थान पर पहुँच कर इंतजार करने लगा। बुढ्ढे आदमी को पहुँचते-पहुँचते बहुत समय लग गया।

जैसे निश्चित हुआ था उस हिसाब से बुजुर्ग ने सिक्के नौजवान को दे दिये। आगे का रास्ता और भी कठिन था।
बुजुर्ग व्यक्ति बोला कि आगे पहाड़ी और भी दुर्गम है। अगर तुम मेरी तीसरी सोने के मोहरों की गठरी भी उठा लो तो मैं तुमको उसके बदले पांच तांबे की मोहरे, पांच चांदी की मोहरे और पांच सोने की मोहरे दूंगा। नौजवान ने खुशी-खुशी हामी भर दी।

निर्धारित पहाड़ी पर पहुँचने से पहले नौजवान के मन में लालच आ गया कि क्यों ना मैं तीनों गठरी लेकर भाग जाऊँ। गठरियों का मालिक तो कितना बुजुर्ग है। वह आसानी से मेरे तक नहीं पहुंच पाएगा। अपने मन में आए लालच की वजह से उसने रास्ता बदल लिया।

कुछ आगे जाकर नौजवान के मन में सोने के सिक्के देखने की जिज्ञासा हुई। उसने जब गठरी खोली तो उसे देख कर दंग रह गया क्योंकि सारे सिक्के नकली थे।

उस गठरी में एक पत्र निकला। उसमें लिखा था कि जिस बुजुर्ग व्यक्ति की तुमने गठरी चोरी की है, वह वहाँ का राजा है।

राजा जी भेष बदल कर अपने कोषागार के लिए ईमानदार सैनिकों का चयन कर रहे हैं।

अगर तुम्हारे मन में लालच ना आता तो सैनिक के रूप में आज तुम्हारी भर्ती पक्की थी। जिसके बदले तुमको रहने को घर और अच्छा वेतन मिलता। लेकिन अब तुमको कारावास होगा क्योंकि तुम राजा जी का सामान चोरी करके भागे हो। यह मत सोचना कि तुम बच जाओगे क्योंकि सैनिक लगातार तुम पर नज़र रख रहे हैं।

अब नौजवान अपना माथा पकड़ कर बैठ गया। कुछ ही समय में राजा के सैनिकों ने आकर उसे पकड़ लिया।
उसके लालच के कारण उसका भविष्य जो उज्जवल हो सकता था, वह अंधकारमय हो चुका था। इसलिए कहते हैं लालच बुरी बला है..!!

शिक्षा:-
ज्यादा पाने की लालसा के कारण व्यक्ति लालच में आ जाता है और उसे जो बेहतरीन मिला होता है उसे भी वह खो देता है।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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समय का महत्व

📜 आज का प्रेरक प्रसंग 📜

किसी गांव में एक व्यक्ति रहता था। वह बहुत ही भला था लेकिन उसमें एक दुर्गुण था वह हर काम को टाला करता था। वह मानता था कि जो कुछ होता है भाग्य से होता है।

एक दिन एक साधु उसके पास आया। उस व्यक्ति ने साधु की बहुत सेवा की। उसकी सेवा से खुश होकर साधु ने पारस पत्थर देते हुए कहा – मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हूं। इसलिय मैं तुम्हे यह पारस पत्थर दे रहा हूं। सात दिन बाद मै इसे तुम्हारे पास से ले जाऊंगा। इस बीच तुम जितना चाहो, उतना सोना बना लेना।

उस व्यक्ति को लोहा नही मिल रहा था। अपने घर में लोहा तलाश किया। थोड़ा सा लोहा मिला तो उसने उसी का सोना बनाकर बाजार में बेच दिया और कुछ सामान ले आया।

अगले दिन वह लोहा खरीदने के लिए बाजार गया, तो उस समय मंहगा मिल रहा था यह देख कर वह व्यक्ति घर लौट आया।

तीन दिन बाद वह फिर बाजार गया तो उसे पता चला कि इस बार और भी महंगा हो गया है। इसलिए वह लोहा बिना खरीदे ही वापस लौट गया।

उसने सोचा-एक दिन तो जरुर लोहा सस्ता होगा। जब सस्ता हो जाएगा तभी खरीदेंगे। यह सोचकर उसने लोहा खरीदा ही नहीं।

आठवे दिन साधु पारस लेने के लिए उसके पास आ गए। व्यक्ति ने कहा- मेरा तो सारा समय ऐसे ही निकल गया। अभी तो मैं कुछ भी सोना नहीं बना पाया। आप कृपया इस पत्थर को कुछ दिन और मेरे पास रहने दीजिए। लेकिन साधु राजी नहीं हुए।

साधु ने कहा-तुम्हारे जैसा आदमी जीवन में कुछ नहीं कर सकता। तुम्हारी जगह कोई और होता तो अब तक पता नहीं क्या-क्या कर चुका होता। जो आदमी समय का उपयोग करना नहीं जानता, वह हमेशा दु:खी रहता है। इतना कहते हुए साधु महाराज पत्थर लेकर चले गए।

शिक्षा:-
मित्रों ! जो व्यक्ति काम को टालता रहता है, समय का सदुपयोग नहीं करता और केवल भाग्य भरोसे रहता है वह हमेशा दुःखी रहता है।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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पाप का गुरु कौन ???

⚜️ आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️

      

एक समय की बात है। एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद गांव लौटे। पूरे गांव में शोहरत हुई कि काशी से शिक्षित होकर आए हैं और धर्म से जुड़े किसी भी पहेली को सुलझा सकते हैं।

शोहरत सुनकर एक किसान उनके पास आया और उसने पूछ लिया- पंडित जी आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है?

प्रश्न सुन कर पंडित जी चकरा गए, उन्होंने धर्म व आध्यात्मिक गुरु तो सुने थे, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और ज्ञान के बाहर था।

पंडित जी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा रह गया है। वह फिर काशी लौटे। अनेक गुरुओं से मिले लेकिन उन्हें किसान के सवाल का जवाब नहीं मिला।

अचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक गणिका (वेश्या) से हो गई। उसने पंडित जी से परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी। गणिका बोली- पंडित जी ! इसका उत्तर है तो बहुत सरल है, लेकिन उत्तर पाने के लिए आपको कुछ दिन मेरे पड़ोस में रहना होगा।

पंडित जी इस ज्ञान के लिए ही तो भटक रहे थे। वह तुरंत तैयार हो गए। गणिका ने अपने पास ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। पंडित जी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे। अपने नियम-आचार और धर्म परंपरा के कट्टर अनुयायी थे।

गणिका के घर में रहकर अपने हाथ से खाना बनाते खाते कुछ दिन तो बड़े आराम से बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला। वह उत्तर की प्रतीक्षा में रहे। एक दिन गणिका बोली- पंडित जी ! आपको भोजन पकाने में बड़ी तकलीफ होती है। यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं। आप कहें तो नहा-धोकर मैं आपके लिए भोजन तैयार कर दिया करूं।

पंडित जी को राजी करने के लिए उसने लालच दिया- यदि आप मुझे इस सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन आपको दूंगी।

स्वर्ण मुद्रा का नाम सुनकर पंडित जी विचारने लगे। पका-पकाया भोजन और साथ में सोने के सिक्के भी ! अर्थात दोनों हाथों में लड्डू हैं। पंडित जी ने अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए।

उन्होंने कहा- तुम्हारी जैसी इच्छा, बस विशेष ध्यान रखना कि मेरे कमरे में आते-जाते तुम्हें कोई नहीं देखे।

पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर उसने पंडित जी के सामने परोस दिया। पर ज्यों ही पंडित जी ने खाना चाहा, उसने सामने से परोसी हुई थाली खींच ली। इस पर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है ?

गणिका ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है। यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का पानी भी नहीं पीते थे, मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया। यह लोभ ही पाप का गुरु है।

शिक्षा:-
हमें किसी भी तरह के लोभ-लालच को जीवन में अपनाएं बिना जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

New hindi story for kids । किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान

एक गांव में एक लड़का रहता था भोलाराम , तकरीबन 10 साल का , जैसा नाम वैसा ही काम , बहुत ही भोला – भाला और कमजोर बुद्धि का बालक , दुनिया की चतुराई से अनभिज्ञ । उसकी मां का निधन हो चुका था , उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी । उसकी सौतेली मां उसे अच्छे से संभालती थी । लेकिन कुछ ही दिनों बाद उसकी सौतेली मां के बच्चे हुए । धीरे-धीरे उस सौतेली मां का व्यवहार बदलने लगा और वह उसे तरह-तरह से प्रताड़ित करने लगी लेकिन वह लड़का बहुत भोला-भाला था उसे यह बात समझ नहीं आती थी । वह अपनी मां के बताए अनुसार ही चलता था उसके मन में अपनी मां के प्रति कभी भी द्वेष की भावना नहीं आई । घर पर ही रहता था और अपनी मां के साथ और अपने पिता के साथ काम करने में मदद करता था ।

कुछ सालों बाद उसके बाकी के भाई – बहन बड़े हो गए और वह लड़का जवान हो गया था । अब उसकी शादी करने की उम्र हो चुकी थी , वह गोरा और गठीले बदन वाला एक नौजवान बन गया था । पिता ने जब उसकी मां के सामने भोलाराम के विवाह की बात की तो , सौतेली मां ने सोचा कि जब इसका विवाह हो जाएगा और इसका परिवार बस जाएगा तब आज नहीं तो कल इसे जायदाद में हिस्सा भी देना पड़ेगा । इसलिए उसने उसे मारने का षड्यंत्र रचा उसके पिता बहुत भोले – भाले थे और दिन भर खेतों में काम करते रहते थे । इसलिए उनको इस बात की भनक नहीं लगी ।

एक दिन उस सौतेली मां ने लड्डू और पूरी बनाएं और एक पोटली में पूड़ी और लड्डू बांध कर जंगल के रास्ते अपने मामा के घर संदेश पहुंचाने के लिए बहाने भोलाराम को भेजने का उपाय किया । षड्यंत्र के तहत उसकी मां ने उसके लड्डू में जहर मिला दिया था उसने लड़के से कहा कि तुम्हें जब रास्ते में भूख लगेगी तब तुम इसे खा लेना और आधी रोटी और लड्डू अपने मामा के घर ले जाना । लड़का अपनी मां की बात मानकर सुबह – सुबह ही नहा धोकर तैयार होकर पोटली लेकर अपने मामा के घर संदेशा पहुंचाने के नाम से घर से निकल पड़ा । चलते – चलते वह जंगल तक पहुंच गया । गर्मी का दिन था इसलिए उसे बहुत ज्यादा थकान लग रही थी ।

जब वह जंगल के बीच में पहुंचा तो वह बहुत ही थक चुका था । उसने सोचा कि यहां पर थोड़ी देर आराम कर लेते हैं । उसने एक छोटे झरने के किनारे बड़े से पत्थर पर अपनी पोटली रखी और पत्थर की खोह में आराम करने लगा थोड़ी देर बाद वहां एक हाथी आया । हाथी लड्डू की सुगंध पाकर पोटली के पास पहुंचा । हाथी ने सूंड से उस पोटली को खोल दिया और उसमें के लड्डू और पूड़ी खा लिए । इस बीच उस लड़के की नींद भी खुल गई और उसने देखा कि वह हाथी उसके खाने को बर्बाद कर रहा है , गुस्से में आकर उसने हाथी को मारना शुरू किया । हाथी ने उसे अपनी सूंड में लपेट लिया वह अपने मुट्ठी से उसके सिर पर बार – बार वार कर रहा था । उधर से राजा की सेना उस हाथी का पीछा करते हुए आ रहा था और जोर-जोर से चिल्ला रहे थे । उन्होंने देखा कि एक लड़का हाथी को कैसे मार रहा है , थोड़ी ही देर में वह हाथी जहर के प्रभाव से गिर पड़ा और थोड़ी ही देर में उसकी मृत्यु हो गई ।

सिपाही चिल्लाने लगे कि यह बहुत बलवान लड़का है ,जिसने अपने मुक्के के प्रहार से इस विशालकाय हाथी को मार दिया और वे नाचने लगे । सिपाहियों ने उस लड़के को बताया कि यह राज दरबार का हाथी है कुछ दिन पहले ही पागल हो गया और राज दरबार से भागकर लोगों को घायल कर रहा था । इसलिए हम इसे पकड़ने आए थे राजा ने इस हाथी को मारने के आदेश दिए हैं । इस हाथी ने लोगों को बहुत परेशान कर रखा था लेकिन तुमने इसे अपने बाहुबल से मार दिया , तुम बहुत महान हो ।

सिपाहियों ने कहा कि राजा बहुत खुश होंगे, तुम्हें बहुत सारे इनाम मिलेंगे , तुम अभी हमारे साथ चलो । लड़का सिपाहियों के साथ चला गया उसने सोचा कि मुझे इनाम में जो धन मिलेगा उसे मैं अपने घर में ले जाऊंगा तो मेरे माता और पिता बहुत ही खुश होंगे । सिपाहियों के साथ वह लड़का राजदरबार में पहुंचा । सिपाहियों ने सारी बात राजा को बता दी , राजा बहुत खुश हुए और उसे 100 सोने की स्वर्ण मुद्रा इनाम के रूप में प्रदान की ।

राजा ने पूछा कि तुम क्या काम करते हो ? लड़के ने कहा – मैं अपने पिता के साथ खेतों में काम करता हूं । राजा ने कहा – तुम बहुत बहादुर हो , तुम बहुत ही शक्तिशाली हो , तुम्हें हमारे दरबार में एक वीर योद्धा के रूप में होना चाहिए । लड़का यह सुनकर बहुत ही खुश हुआ और उसने राजा की बात मान ली और वहां पर सैनिक का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया । उसकी मेहनत को देखकर राजा ने उसे सेना की एक टुकड़ी का सेनापति बना दिया । इधर बहुत दिनों तक उस लड़के की कोई खोज – खबर नहीं थी । इसलिए उसके परिवार वालों ने उसे मृत मान लिया और उसकी सौतेली मां मन ही मन बहुत ही खुश होने लगी ।

थोड़े ही दिनों बाद एक शेर ने राजा के राज्य में उत्पात मचाना शुरू कर दिया और लोगों को मारना शुरू कर दिया । राजा ने तुरंत ही अपनी सेनाओं के सेनापतियों को आदेश दिया कि उस शेर को ढूंढ कर मार दिया जाए । भोलाराम भी अपनी टुकड़ी के साथ उस शेर को पकड़ने के लिए जंगल में छान मारने लगा । एक दिन जब वह अपनी सेना के साथ शेर को ढूंढ रहा था तब उसी जंगल में एक किसान मिला । किसान ने उससे कहा कि – सेनापति जी मेरा एक बैल घर से भागकर घने जंगल में आ गया है , मैं उसे तलाश करते -करते थक गया हूं । अगर आप लोगों को वह बैल मिल जाए तो उसे आप अपने पास रख लीजिएगा और मेरे गांव में मुझे सूचना भिजवा दीजिएगा ।

सेनापति ने किसान से कहा कि – आप चिंता मत करिए अगर वह बैल हमको मिला तो हम उसे अवश्य ही आप तक पहुंचा देंगे , अब आप अपने घर चले जाइए अकेले जंगल में भटकना ठीक नहीं है । रात होने पर वे पेड़ों के ऊपर सो जाते थे और कुछ सैनिक नीचे तंबू बनाकर निगरानी करते थे । उसी दिन रात को सेनापति को एहसास हुआ कि , कोई जानवर उसके पेड़ के नीचे खड़ा है , उसने ध्यान से देखा और कहा अरे यह तो किसान का बैल है । रस्सी का फंदा लेकर भोलाराम ने उसके ऊपर छलांग लगा दी और उसकी गर्दन को रस्सी से लपेट दिया सभी सैनिक भी उसके पीछे-पीछे उस पर टूट पड़े । रात के अंधेरे में भगदड़ मच गई सैनिकों ने बड़े – बड़े जाल फेंक कर उसको पकड़ लिया ।

सभी सैनिकों ने मशाल जलाई तब उस लड़के ने देखा , अरे यह तो खूंखार शेर है ! उसकी बोलती बंद हो गई लेकिन सारे सैनिक उसकी जय-जयकार करने लगे । शेर को पिंजरे में कैद कर राजा के पास लाया गया । भोलाराम के इस कारनामे को देखकर राजा अत्यंत ही प्रसन्न हुए , उन्होंने उसे अपने राज्य का मुख्य सेनापति घोषित कर दिया । उसकी बहादुरी को देख कर अतिसुन्दर राजकुमारी इतनी प्रसन्न हुई कि उन्होंने उससे विवाह करने की घोषणा कर दी ।

राजा ने भी खुश होकर उनके विवाह को मंजूरी दे दी । इस तरह राजकीय ठाठ – बाठ से उसका विवाह संपन्न हुआ । वह अपनी नई – नवेली दुल्हन को लेकर सैनिकों के बेड़े के साथ अपने गांव की ओर रवाना हुआ । उसके गांव के लोग उसे देखकर हक्के – बक्के रह गए । जब वह अपने घर के पास जाकर खड़ा हुआ तो उसकी मां और पिताजी उसको देखकर सन्न रह गए । सौतेली मां के पैरों तले तो मानों जमीन ही खिसक गई ।

उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला । लड़के ने अपनी सारी बात अपने परिवार वालों की बताई और कहा कि आज से हम राज महल में रहेंगे , मैं आप सबको लेने के लिए आया हूं । यह बात सुनकर उसकी सौतेली मां को मन ही मन बहुत पश्चाताप हुआ और अपने आपको कोसने लगी और खूब रोई , उसने उसके साथ राजमहल जाने के लिए इंकार कर दिया । लेकिन उस लड़के की बार-बार जिद करने पर वह जाने के लिए मान गई और उसके बाद उसने कभी भी उस लड़के और उसकी पत्नी के बारे में कभी भी अपने मन में बुरे विचार नहीं लाएं इस तरह सभी लोग राजमहल में हंसी – खुशी रहने लगे ।

पारंपरिक लोककथा
पुरुषोत्तम साहू